कबीर साहेब जी द्वारा दी गई शिक्षाएं: Teachings given by Kabir Saheb

कबीर साहेब जी द्वारा दी गई शिक्षाएं :- 


कबीर परमेश्वर चारों युगों में सशरीर प्रकट होते हैं और अपनी वास्तविक जानकारी आप ही बताते हैं। कबीर परमात्मा सत्ययुग में "सत्य सुकत" नाम से, त्रेता में "मुनिन्द्र" नाम से, द्वापर में "करूणामय" नाम से तथा कलयुग में अपने वास्तविक "कबीर" नाम से प्रकट होते हैं। परमेश्वर कबीर जी कहते हैं -

सतयुग में सत सुकत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा। 

द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।।


इसी विधान अनुसार, कबीर साहेब जी का कलयुग में प्रकाट्य आज से लगभग 626 वर्ष पूर्व भारत की पवित्र भूमि में आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र कहे जाने वाले काशी शहर के लहरतारा तालाब में ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रम संवत 1455, सन् 1398 दिन सोमवार को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए थे। जहाँ नीरू-नीमा नामक दो निःसंतान दंपति जोकि प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में लहरतारा तालाब में स्नान करने जाते थे, उन्हें मिले थे जिसके बाद नीरू-नीमा बालक रूपी परमेश्वर कबीर जी को अपने घर ले गए थे। परमेश्वर कबीर जी के प्रकट होने की घटना के प्रत्यक्ष दृष्टा स्वामी रामानंद ऋषि जी के शिष्य अष्टानन्द नामक ऋषि थे जोकि प्रतिदिन लहरतारा तालाब में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के लिए जाया करते थे और कुछ समय वहाँ बैठकर अपनी भक्ति क्रियाएँ किया करते थे। उसी दौरान परमेश्वर कबीर जी शिशु रूप में प्रकट हुए थे।


आपके सामने प्रस्तुत हैं कबीर परमेश्वर के प्रकट होने की वास्तविक जानकारी देती हुईं कुछ अमृतवाणियां पवित्र कबीर सागर, अध्याय "अगम निगम बोध" पृष्ठ 41 से :


अवधू अबिगत से चल आया, कोई मेरा भेद मर्म नहीं पाया।। ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक होय दिखलाया। 

काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।।

माता-पिता मेरे कछु नहीं, ना मेरे घर दासी। 

जुलहा को सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।। 

पांच तत्त्व का धड़ नहीं मेरा, जानूं ज्ञान अपारा। 

सत्य स्वरूपी नाम साहिब का, सो है नाम हमारा।। 

अधर दीप (सतलोक) गगन गुफा में, तहां निज वस्तु सारा।

ज्योति स्वरूपी अलख निरंजन (ब्रह्म) भी, धरता ध्यान हमारा।। 

हाड चाम लोहू नहीं मोरे, जाने सत्यनाम उपासी। 

तारन तरन अभै पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।


"परमेश्वर कबीर जी द्वारा दी गईं शिक्षाएँ"


जब परमेश्वर कबीर जी लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हुए तभी से उन्होंने जाति, धर्मों में फैले पाखण्ड, अंधविश्वास को और समाज में फैली कुरीतियों को अपने सत्यज्ञान से उजागर किया तथा समाज को अनेकों शिक्षाएँ प्रदान की। जिससे लोग जाति, मजहब के नाम पर लड़ना बंद करें और पाखंड, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों को छोड़ एक परमेश्वर की भक्ति करें। अब जानिए कबीर परमेश्वर द्वारा दी गई कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाओं को


"कबीर साहेब का हिन्दू-मुसलमान समेत सभी धर्मों को संदेश"


कबीर साहेब जी ने जातिवाद, धर्म के नाम पर हो रहे भेदभाव का खंडन करते हुए लोगों को बताया कि 


जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।।

कबीर, हिंदू-मुस्लिम सिक्ख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई।

आर्य-जैनी और बिश्नोई, एक प्रभू के बच्चे सोई।।


कबीर परमेश्वर जी ने सभी जाति, धर्मों के लोगों को संदेश देते हुए कहा है कि सब मानव एक परमात्मा की संतान हैं। हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, आर्य- बिश्नोई, जैनी आदि सभी आपस में भाई-भाई हैं। हमें आपस में मिल जुल कर रहना चाहिए। अज्ञानता वश हम अलग-अलग जाति, धर्मों में बंट गये है। परमेश्वर कबीर जी आगे बताते हुए कहते हैं कि 


हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना ।।


परमेश्वर कबीर जी कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया। सच तो यह है कि सबका मालिक एक है परमात्मा एक है। हम सभी जीवात्मा एक परमात्मा के बच्चे हैं।


"कबीर साहेब ने माँस भक्षण को बताया निषेध"


कबीर साहेब जी बताते हैं कि मांस खाना महापाप है। हमें निर्दोष जीवों की हत्या नहीं करनी चाहिए। चींटी से लेकर हाथी तक सभी उसी परमात्मा के बच्चे हैं अगर हम उसके बच्चे को भोजन के लिए मारते है तो परमात्मा कैसे खुश हो सकता है? यह बिल्कुल ग़लत है। मांस खाने को पवित्र शास्त्रों ने भी नकारा है। मांस खाने और जीव हत्या करने वालों को कबीर साहेब जी ने संदेश दिया है कि 


कबीर, दया कौन पर कीजिए, का पर निर्दय होय।

साई के सब जीव हैं, कीड़ी कुंजर दोय।।

कबीर, मांस मांस सब एक हैं, मुरगी हिरनी गाय।

आंखि देखि नर खात है, ते नर नरकहि जाय।।

कबीर-बकरी पाती खात है, ताकी काढी खाल।

जो बकरी को खात है, तिनका कौन हवाल।।

हिन्दू झटके मारही, मुस्लिम करे हलाल ।

गरीब दास दोऊ दीन का, वहां होगा हाल बेहाल ।।


"कबीर जी की अच्छे व्यवहार के लिए दी गईं शिक्षाएँ"


कबीर साहेब जी ने मानव को संसार में एक दूसरे के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए इसको लेकर भी संदेश दिया है। जिससे की मानव खुद भी शांति महसूस करे और औरों को भी शांति प्राप्त हो। परमेश्वर कबीर जी कहते हैं - 


कबीर, ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए। 

औरन को शीतल करे, आप भी शीतल होय।।

जो तोकूं काँटा बोवै, ताको बो तू फूल।

तोहे फूल के फूल है, वाको है त्रिशूल।।

जहां दया तहा धर्म है, जहां लोभ वहां पाप । 

जहां क्रोध तहा काल है, जहां क्षमा वहां आप।।

कबीर, कुटिल बचन सबसे बुरा, जासे होत न हार। 

साधू बचन जल रूप है, बरसे अमृत धार।।

सांच बराबर तप नही, झूठ बराबर पाप।

जाके हृदय सांच है, ताके हृदय आप।।

कबीर, मद अभिमान न कीजिए, कहैं कबीर समुझाय ।

जा सिर अहं जु संचरे, पडै चौरासी जाय ।।

कबीर सबसे हम बुरे, हमसे भला सब कोय।

जिन ऐसा करि बुझिया, मीत हमारा सोय।।


"कबीर साहेब की भक्ति से संबंधित शिक्षाएं"


कबीर साहेब जी ने अपनी वाणियों के माध्यम से सामाजिक ज्ञान के अलावा एक परमेश्वर की सत्य भक्ति करने की भी शिक्षाएँ दी हैं। उन्होंने पाखण्ड पूजाओं को छोड़ एक परमेश्वर की शास्त्रानुकूल भक्ति करने के लिए जोर दिया है। कबीर साहेब कहते हैं - 


कबीर, वेद पढ़ें पर भेद ना जानें, बांचें पुराण अठारा।

पत्थर की पूजा करें, भूले सिरजनहारा।।

कबीर, पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।

तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।

कबीर, पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।

एक पहर हरि नाम बिनु, मुक्ति कैसे होय ॥

कबीर, गुरू बिना माला फेरते, गुरू बिना देते दान।

गुरू बिन दोनों निष्फल है, भावें देखो वेद पुराण।।

हांसी खेल हराम है, जो जन रमते राम। 

माया मंदिर इस्तरी, नहिं साधु का काम॥


"नारी के सम्मान के लिए कबीर जी की शिक्षाएं"


कबीर साहेब जी का उद्देश्य समाज को नारी के प्रति सजग और सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करना भी रहा है। कबीर साहेब जी के लिए प्रत्येक आत्मा महत्वपूर्ण है। कबीर जी कहते थे कि ईश्वर ने इंसानों को अपने जैसा बनाया और उन्हें पुरुष और महिला बनाया। ईश्वर के लिए जब नर और नारी में कोई भेद नहीं है तो फिर हम नर-नारी में भेद क्यों करें?


गरीब, नारी नरक ना जानिये, सब संतो की खान।

जामे हरीजन उपजै, सोयी रतन की खान ||


भावार्थ है कि नारी को नरक मत समझो। वह सभी संतों की खान है। नारी के कोख़ से ही सभी महान पुरुषों की उत्पत्ति होती है वो रत्नों की खान है।


11 आश्रमों में मनाया जाएगा परमेश्वर कबीर जी का 626वां प्रकट दिवस


ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया। 

काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।।


जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में आदरणीय कबीर साहिब जी के प्रकट दिवस पर 2, 3 व 4 जून 2023 को तीन दिवसीय महासमागम आयोजित किया जायेगा। बंदीछोड़ कबीर परमेश्वर के सहशरीर शिशु रूप में प्रकट होने के अवसर पर सतलोक आश्रम सिंहपुरा रोहतक (हरियाणा), सतलोक आश्रम भिवानी (हरियाणा), सतलोक आश्रम कुरुक्षेत्र (हरियाणा), सतलोक आश्रम मुंडका (दिल्ली), सतलोक आश्रम शामली (उत्तरप्रदेश), सतलोक आश्रम खमाणों (पंजाब), सतलोक आश्रम धुरी, (पंजाब) सतलोक आश्रम बैतूल (मध्य प्रदेश), सतलोक आश्रम इंदौर (मध्यप्रदेश), सतलोक आश्रम सोजत (राजस्थान), सतलोक आश्रम धनुषा (नेपाल) सहित कुल 11 आश्रमों में 2 से 4 जून 2023 को अखंड पाठ एवं विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। सभी भाइयों बहनों से करबद्ध निवेदन है कि आप कबीर परमेश्वर के प्रकट दिवस पर अपने परिवार, रिश्तेदारों, सगे संबंधियों के साथ पधार कर कबीर परमेश्वर की शिक्षाओं से हो रहे आदि सनातन धर्म व मानव धर्म के पुनरुत्थान के साक्षी बनें।


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