बुद्ध पूर्णिमा ( Buddha Purnima) 2022: कैसे बनें सिद्धार्थ राजा से महात्मा बुद्ध?

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गौतम बुद्ध (Buddha Purnima In Hindi) जीवन परिचय:

बुद्ध का जन्म: गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ। उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया।

कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था।

उनका जन्म नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं समूचे भारत में था। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माँ का देहांत हो गया था।

बुद्ध की शिक्षा-दिक्षा: वैसे तो सिद्धार्थ ने कई विद्वानों को अपना गुरु बनाया किंतु गुरु विश्वामित्र के पास उन्होंने वेद और उपनिषद् पढ़े, साथ ही राजकाज और युद्ध-विद्या की भी शिक्षा ली। कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान, रथ हांकने में कोई उनकी बराबरी नहीं कर सकता था।

बुद्ध का विवाह: शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का सोलह वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया। बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे।

2022 में बुद्ध पूर्णिमा कब है? (Buddha Purnima Date 2022)

बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima in Hindi) 16 मई, 2022 को है। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं और उनके शिष्यों के संघ के सम्मान में स्तुति की जाती हैं। साथ ही बौद्ध धर्म के लोग विशेष तौर पर इस दिन सफेद कपड़े पहनते हैं और ध्यान (Meditation) में अपना दिन बिताते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima in Hindi) किस उपलक्ष्य में मनाई जाती है?

बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima in Hindi) के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका निर्वाण (निधन) भी हुआ था। गौतम बुद्ध के जन्म के उपलक्ष्य में ही बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। बुद्ध पूर्णिमा हर साल मुख्यतः बोधगया और सारनाथ में मनाई जाती है। इसके साथ ही भारत के कई अन्य बौद्ध क्षेत्रों जैसे सिक्किम, लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर बंगाल के क्षेत्रों कालिमपोंग, दार्जिलिंग और कुर्सेओंग आदि में भी इसको त्योहार की तरह मनाया जाता है।

क्यों गौतम बुद्ध को दुखों से दूर रखा जाता था?

जब गौतम बुद्ध अपनी माँ के गर्भ में थे तब इनकी माता ने एक दिन एक स्वप्न देखा कि छः हाथियों का एक झुंड अपनी सूंडो में कमल के फूल लाकर उनके चरणों में अर्पित कर रहे थे। इस स्वप्न के बारे में विद्वानों को बताने पर विद्वानों ने शुद्धोधन (महात्मा बुद्ध के पिता) को बताया कि आपकी होने वाली संतान पूरी दुनिया को जीत कर एक पराक्रमी शासक की तरह राज्य करेगी या फिर वो एक सन्यासी बन लोगों के बीच ज्ञान प्रचार करेगी।

Buddha Purnima 2022 in Hindi: इसी वजह से बुद्ध की सभी सुख सुविधाओं का ध्यान उनके महल में ही रखा जाता था। उनके पिता उन्हें जीवन में घटित होने वाले दुखों से कोसों दूर रखते थे ताकि विद्वानों द्वारा सन्यास धारण करने की बात कदापि सत्य साबित न हो ।

गौतम बुद्ध के गृहत्याग का कारण?

एक दिन महात्मा बुद्ध को कपिलवस्तु की सैर की इच्छा हुई और वे अपने सारथी को साथ लेकर सैर पर निकले। मार्ग में चार दृश्यों को देखकर घर त्याग कर सन्यास लेने का प्रण लिया।

• बूढ़ा व्यक्ति

• एक बीमार व्यक्ति

• शव

• एक सन्यासी

Buddha Purnima 2022 [Hindi] | इनको देखकर बुद्ध का मन विचलित हो गया तो उनके सारथी ने उन्हें बताया कि ये जीवन का कटु सत्य है। हर व्यक्ति को एक दिन बूढ़ा होना है और बुढ़ापा अपने साथ रोग लेकर आता है। इसके पश्चात मृत्यु का आना भी एक परम सत्य है। इन दृश्यों को देखने के उपरांत बुद्ध इस जन्म मरण के चक्र तथा मनुष्यों के दुखों का कारण और उसका समाधान ढूंढने के लिए व्याकुल हो उठे। उस समय उनकी आयु मात्र 29 वर्ष थी जिस समय उन्होंने गृहत्याग किया। बौद्धधर्म में उनके गृहत्याग को महाभिनिष्क्रमण कहा गया। गीता जी के अध्याय 3 श्लोक 8 में, घर त्याग कर, हठयोग साधना करने को निषेध बताया है और कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करते-करते भक्ति कर्म करने को श्रेष्ठ बताया है। 

कबीर साहेब जी भी बताते है कि:

जब तक गुरु मिले न साचा, तब तक गुरू करो दस पांचा।।

मनुष्य जीवन में गुरु का बहुत महत्व है। एक गुरु ही है जो मानव जीवन को अनमोल बनाता है और जन्म मृत्यु के रोग से छुटकारा दिला सकता है। परंतु अफसोस बुद्ध को उनके जीवनकाल में कोई आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला सच्चा गुरु नही मिला। परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने सत्संग में बताते हैं कि पिछले पुण्य कर्मों वाली आत्मा परमात्मा को ढूंढें बिना नहीं रह पाती। तब माया भी उसके पैरों में बेड़ी नहीं डाल सकती।

कैसे बना सिद्धार्थ गौतम, राजा से महात्मा बुद्ध?

बुद्ध को अपने सवालों का जवाब किसी गुरु से नहीं मिला। आगे चलकर उरुवेला में बुद्ध को उन्हीं की तरह पाँच जिज्ञासु साधक मिले। 6 साल तक बिना अन्न जल ग्रहण किए कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की अवस्था में वैशाख पूर्णिमा की रात निरंजना (फल्गु) नदी के किनारे बुद्ध को एक ज्योतिपुंज दिखाई दिया, जो कि ज्योति निरंजन काल ब्रह्म अपनी ज्योत रूप में दिखाई दे रहा था।

Buddha Purnima in Hindi: उनका शरीर मरणासन्न अवस्था में पहुँच गया था उनकी साधना भले ही गलत थी लेकिन वे भी परमपिता परमात्मा के ही बच्चे थे इसलिए परमात्मा ने एक माई को प्रेरणा की जिसने उन्हें खीर खिलाई। रोज़ थोड़ा थोड़ा अन्न ग्रहण करने से उनकी स्थिति सुधरी, हालत ठीक होते ही उठकर खड़े हुए और उनका पहला कथन था।

बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण क्या है?

वाण, का तात्पर्य है पुनर्जन्म का पथ, + निर, का तात्पर्य है छोड़ना या “पुनर्जन्म के पथ से दूर होना। लालच, घृणा और भ्रम का नाश ही निर्वाण है। निर्वाण ही परम आनंद है।”(बौद्ध धर्म के मतानुसार) बुद्ध का आध्यात्मिक ज्ञान शून्य था। उन्होंने अपनी अल्पज्ञ बुद्धि के आधार पर अष्टांगिक मार्गों की सरंचना की और कहा इन अष्टांगिक मार्गों के पालन के उपरांत मनुष्य की भवतृष्णा नष्ट हो जाती है और उसे निर्वाण मोक्ष प्राप्त हो जाता है। जबकि ऐसा नहीं है।

बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है लेकिन इसमें आत्मा की परिकल्पना भी नहीं है। बुद्ध के ज्ञान और समाधान से किसी को कोई लाभ नहीं हुआ तो बुद्ध की शिक्षाओं को मानने वालों ने ये समझ लिया कि भगवान होता ही नहीं जबकि वास्तविकता तो ये है कि महात्मा बुद्ध के पास यथार्थ ज्ञान था ही नहीं। अगर भक्ति करते हुए भी साधक को लाभ नहीं मिल रहा है तो ये समझ लें कि भक्ति करने की विधि सही नहीं है, न कि भगवान होते ही नहीं हैं।

गीता अध्याय 16 के श्लोक 23-24 में प्रमाण है कि जो साधक शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण करता है अर्थात् मनमानी साधना करता है, उसे न तो कोई सुख प्राप्त होता है, न कोई सिद्धि और मोक्ष। सब व्यर्थ है। भूखे रहने से और हठयोग करते हुए यदि साधक की मृत्यु होती है तो वह पुनर्जन्म और चौरासी लाख योनियों में जाने से नहीं बच सकता।

"कबीर वाणी" पृष्ठ 137 पर लिखा है शास्त्रानुकूल साधना करने से पूर्ण मोक्ष होगा। श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता ने पूर्ण मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने से अन्य परमेश्वर की शरण में जाने को कहा है कि हे अर्जुन। सर्व भाव से तू उस परमेश्वर की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा।

क्या वाकई भगवान नही है?

आध्यात्मिक ज्ञान न होने के कारण लोग आंखें मूंद कर बुद्ध के ज्ञान से प्रभावित हुए जिससे चीन, म्यांमार जैसे राष्ट्र बुद्ध के बताए मार्ग पर चलकर नास्तिक हो गए। बौद्धधर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जिसने भगवान के अस्तित्व को नकारा है, उदाहरण के लिए एक घर बिना मुखिया के तथा एक देश बिना प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के व्यवस्थित ढंग से नहीं चल सकता तो सोचने वाली बात है कि इतना बड़ा ब्रह्मांड तथा इसमें घूमने वाले ग्रह उपग्रह इतने व्यवस्थित ढंग से कैसे अपना कार्य कर रहे हैं ?

Buddha Purnima in Hindi: महात्मा बुद्ध ने अपने अनुयायियों को अच्छे कर्म करना, हठ योग करना, ध्यान लगाना, खुद को शारीरिक कष्ट देने पर ज़ोर दिया। बुद्ध का मानना था कि शरीर को कष्ट देकर ही पिछले पाप कर्मों को नाश किया जा सकता है। लेकिन ये सारी साधना हमारे धर्म ग्रंथों के अनुकूल नहीं है। बल्कि निर्वाण अर्थात मोक्ष केवल शास्त्र अनुकूल साधना करने से ही सम्भव है जिसका प्रमाण हमारे धर्म ग्रंथों में है।

Buddha Purnima पर जानिए परमात्मा साकार है या निराकार?

बौद्ध धर्म की मान्यता अनुसार परमात्मा का कोई आकार नहीं है और न ही कोई सृष्टि रचने वाला है, परन्तु यह उनकी गलत धारणा है और इसमें तनिक भी सच्चाई नहीं है। हमारे धर्म ग्रंथों में पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के सशरीर होने का स्पष्ट वर्णन है। इसके अतिरिक्त यह भी वर्णन है कि वही सृष्टि के रचयिता हैं जो सबका पालन पोषण करते हैं।

साखी-अब मैं कहूं तोहि सों चित करो विचार।

कहै कबीर पुरूष को, याही रूप निज सार ||

पृष्ठ 82 पर वाणी में लिखा है:-

पुरूष गले पुष्प की माला।

हाथ अमर अंकुर रिसाला।

उपरोक्त प्रमाण से स्पष्ट है कि परमेश्वर का मानव जैसा शरीर है। उसका प्रत्येक अंग प्रकाशमान है तथा वह अविनाशी परमात्मा अमर लोक में विद्यमान है।


सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता कबीर परमेश्वर हैं।

पूर्ण परमात्मा (कबीर साहेब) ने ही सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है जिसका प्रमाण चारों वेद, गीता जी, कबीर सागर आदि ग्रंथों में मिलता है जो इस प्रकार है:-

• अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 1

ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्त्ताद् वि सीमतः सुरुचो वेन आवः।

स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः।।

• भावार्थ:- इस श्लोक में स्वयं ब्रह्म (काल- इक्कीस लोकों का स्वामी) कह रहा है कि सनातन परमेश्वर कबीर साहेब (असंख्य ब्रह्माण्डों का स्वामी) ने स्वयं अनामय (अनामी) लोक से सत्यलोक में प्रकट होकर अपनी सूझबूझ से कपड़े की तरह रचना करके ऊपर के सतलोक आदि को सीमा रहित स्वप्रकाशित अजर-अमर अर्थात अविनाशी ठहराए तथा नीचे के परब्रह्म के सात शंख ब्रह्माण्ड तथा ब्रह्म के 21 ब्रह्माण्ड व इनमें छोटी-से छोटी रचना भी उसी परमात्मा ने अस्थाई की है।

• अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र नं. 4

सः हि दिवः सः पृथिव्या ऋतस्था मही क्षेमं रोदसी अस्कभायत्।

महान् मही अस्कभायद् वि जातो द्यां सप्र पार्थिवं च रजः।

• भावार्थ:- ऊपर के चारों लोक सत्यलोक, अलख लोक, अगम लोक, अनामी लोक, यह तो अजर-अमर स्थाई अर्थात अविनाशी रचे हैं तथा नीचे के ब्रह्म तथा परब्रह्म के लोकों को अस्थाई रचना करके तथा अन्य छोटे-छोटे लोक भी उसी परमेश्वर ने रच कर स्थिर किए। पूर्ण पुरुष कविर्देव तो सबसे बड़ा है अर्थात् सर्वशक्तिमान है तथा सर्व ब्रह्माण्ड उसी ने रचे हैं।

• गीता अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 17

उत्तमः, पुरुषः, तु, अन्यः, परमात्मा, इति, उदाहृतः,

यः, लोकत्रायम् आविश्य, बिभर्ति, अव्ययः, ईश्वरः।

उपरोक्त्त प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि परमात्मा सशरीर है, उसका नाम कबीर है। जिसने छ: दिन में सृष्टि रची और सातवें दिन तख्त पर जा विराजे। उन्हीं की बताई भक्ति जो कि हमारे धर्म ग्रंथो में वर्णित है, करने से मोक्ष संभव है। इसके अतिरिक्त कोई भी शास्त्र विरुद्ध साधना जैसे घर त्यागना, हठयोग करना, ध्यान लगाना, सन्यासी बनना, उपवास रखना, मौन धारण करना, मांग कर खाना इत्यादि सब व्यर्थ क्रियाएं हैं। किसी भी साधक के लिए सृष्टि रचना की संपूर्ण जानकारी होना अनिवार्य है, 

इसके लिए अवश्य पढ़ें पुस्तक 👉🏻 ज्ञान गंगा।  DOWNLOAD

परमेश्वर के अस्तित्व को नकारना इंसान की नादानी है।

बौद्धधर्म जिस तप और ध्यान को मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग कहता है, उसके बारे में श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय न.17 के श्लोक 5 में कहा है:-

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।

दम्भाहङ्‍कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः॥

अथार्त् जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मन कल्पित घोर तप को तपते हैं तथा दम्भ और अहंकार से युक्त एवं कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त हैं। गीता में घोर तप तथा ध्यान साधना को गलत बताया है।

पूर्ण परमात्मा व पूर्ण संत की पहचान -

पूर्ण परमेश्वर हर युग में या तो खुद आते हैं या अपना नुमाइंदा भेजते हैं, जो तत्वज्ञान से साधक को परिचित करवाकर शास्त्र अनुकूल मोक्ष दायक साधना प्रदान करते हैं। उस तत्वदर्शी संत की पहचान गीता अध्याय न. 15 श्लोक 1 से 4 में वर्णित है, जिसमें उल्टे लटके वृक्ष का वर्णन है। जिसके बारे में गीता ज्ञान दाता ने साफ कहा है कि जो संत इस उल्टे लटके संसार रूपी वृक्ष के सभी विभागों का वर्णन ठीक ठीक कर देगा वही तत्वदर्शी संत होगा।

वर्तमान समय में कौन है तत्वदर्शी संत?

आध्यात्मिक ज्ञान अनुसार वर्तमान समय तक उल्टे लटके वृक्ष की गुत्थी को कोई भी नकली संत या महामंडलेश्वर नहीं सुलझा पाया था। केवल सच्चे संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं जिन्होंने सभी वेदों, गीता जी, पुराण आदि में प्रमाण सहित ये सिद्ध कर दिया है कि कबीर साहेब जी ही पूर्ण परमेश्वर हैं तथा उन्हीं की भक्ति करने से साधक अपने निजधाम सतलोक को जा सकता है। बुद्ध जैसी साधना का अनुसरण करने से न तो निर्वाण होगा न परमात्मा मिलेगा। 

अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें सत्संग साधना चैनल पर प्रतिदिन शाम 7:30 pm से। यदि आप संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा लेना चाहते हैं तो कृपया नाम दीक्षा फॉर्म भरें। सन्त रामपाल जी महाराज एप्प डाउनलोड कर उसमें विभिन्न धार्मिक पुस्तकें, ऑडियो, वीडियो सत्संग एवं अन्य समाचारों का लाभ उठा सकते हैं।


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