सृष्टि के रचयिता कौन है ?

By :- Spiritual Leader Saint Rampal Ji Maharaj Ji 

सृष्टि रचना

◆प्रभु प्रेमी आत्माऐं प्रथम बार निम्न सृष्टी की रचना को पढेंगे तो ऐसे लगेगा जैसे दन्त कथा हो, परन्तु सर्व पवित्र सद्ग्रन्थों के प्रमाणों को पढ़कर दाँतों तले उँगली दबाऐंगे कि यह वास्तविक अमृत ज्ञान कहाँ छुपा था? कृप्या धैर्य के साथ पढ़ते रहिए तथा इस अमृत ज्ञान को सुरक्षित रखिए। आप की एक सौ एक पीढ़ी तक काम आएगा।




सृष्टि के रचयिता कौन है ?

1. पूर्ण ब्रह्म:- इस सृष्टी रचना में सतपुरुष-सतलोक का स्वामी (प्रभु), अलख पुरुष-अलख लोक का स्वामी (प्रभु), अगम पुरुष-अगम लोक का स्वामी (प्रभु) तथा अनामी पुरुष-अनामी अकह लोक का स्वामी (प्रभु) तो एक ही पूर्ण ब्रह्म है, जो वास्तव में अविनाशी प्रभु है जो भिन्न-2 रूप धारण करके अपने चारों लोकों में रहता है। जिसके अन्तर्गत असंख्य ब्रह्मण्ड आते हैं।
चार वेद, छह शास्त्र 18 पुराण, पवित्र कुरान शरीफ, बाइबिल, गुरु ग्रंथ साहिब सभी गवाही देते हैं कि सृष्टि के रचयिता कबीर परमेश्वर जी हैं।


👉 आइए अब चलते हैं हम प्रमाणों की तरफ

अथर्ववेद में प्रमाण

परमात्मा का नाम कबीर (कविर देव) है। - पवित्र अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7
पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब ही पूर्ण मोक्षदायक हैं।




ऋग्वेद में प्रमाण

सृष्टि के रचयिता कबीर परमात्मा
ऋग्वेद मण्डल नं 9 सूक्त 54 मंत्र 3 में लिखा है कि सूर्य के समान यानि जैसे सूर्य ऊपर विद्यमान है ऐसे पवित्र शीतल अमर परमेश्वर कबीर विश्व के सर्व लोकों के ऊपर के लोक में बैठा है, जो सर्व सृष्टि का रचनहार है।




वेदों अनुसार सर्व सृष्टि रचनहार कबीर परमात्मा हैं
ऋग्वेद मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 3
इस मंत्र में बताया गया है कि वह पूर्ण ब्रह्म कविर्देव तो परब्रह्म से भी बड़ा है अर्थात् सर्वशक्तिमान है तथा सर्व ब्रह्मण्ड उसी के अंश मात्र पर ठहरे हैं।



ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 82 मंत्र 1 में बताया है
 सबकी रचना करने वाला परमात्मा राजा के समान दर्शनीय है व दृढ़ भक्तों को मिलता है और उनको सत्य ज्ञान बताते हैं।



2. परब्रह्म:- यह केवल सात संख ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। यह अक्षर पुरुष भी कहलाता है। परन्तु यह तथा इसके ब्रह्मण्ड भी वास्तव में अविनाशी नहीं है।

3. ब्रह्म:- यह केवल इक्कीस ब्रह्मण्ड का स्वामी (प्रभु) है। इसे क्षर पुरुष, ज्योति निरंजन, काल आदि उपमा से जाना जाता है। यह तथा इसके सर्व ब्रह्मण्ड नाशवान हैं।

(उपरोक्त तीनों पुरूषों (प्रभुओं) का प्रमाण पवित्र श्री मद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 16,17 में भी है।)

4. ब्रह्मा:- ब्रह्मा इसी ब्रह्म का ज्येष्ठ पुत्र है, विष्णु मध्य वाला पुत्र है तथा शिव अंतिम तीसरा पुत्र है। ये तीनों ब्रह्म के पुत्र केवल एक ब्रह्मण्ड में एक विभाग (गुण) के स्वामी (प्रभु) हैं तथा नाशवान हैं। विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़ें निम्न लिखित सृष्टी रचना:-

कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने सुक्ष्म वेद अर्थात् कबीर वाणी में अपने द्वारा रची सृष्टी का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है:-
सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी (अनामय) लोक‘ था। जिसे अकह लोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है। सभी आत्माऐं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। इसी कविर्देव का उपमात्मक (पदवी का) नाम अनामी पुरुष है (पुरुष का अर्थ प्रभु होता है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है।) अनामी पुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।

विशेष:- जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्री जी का शरीर का नाम तो अन्य होता है तथा पद का उपमात्मक (पदवी का) नाम प्रधानमंत्री होता है। कई बार प्रधानमंत्री जी अपने पास कई विभाग भी रख लेते है। तब जिस भी विभाग के दस्‍तावेजों पर हस्त्ताक्षर करते हैं तो उस समय उसी पद को लिखते हैं। जैसे गृहमंत्रालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगें तो अपने को गृह मंत्री लिखेगें। वहाँ उसी व्यक्ति के हस्त्ताक्षर की शक्ति कम होती है। इसी प्रकार कबीर परमेश्वर (कविर्देव) की रोशनी में अंतर भिन्न-2 लोकों में होता जाता है।

ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन) से की। यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही अगम लोक में प्रकट हुआ तथा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) अगम लोक का भी स्वामी है तथा वहाँ इनका उपमात्मक (पदवी का) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है। इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम कूप की रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से भी अधिक है।

यह पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबिर देव=कबीर परमेश्वर) अलख लोक में प्रकट हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक (पदवी का) नाम अलख पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु का मानव सदृश शरीर तेजोमय (स्वज्र्योति) स्वयं प्रकाशित है। एक रोम कूप की रोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है।

यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है। इसलिए इसी का उपमात्मक (पदवी का) नाम सतपुरुष (अविनाशी प्रभु)है। इसी का नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रह्म - परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं। इसी सतपुरुष कविर्देव (कबीर प्रभु) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है। जिसके एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूर्यों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।

इस कविर्देव (कबीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की।

Creation of Universe

एक शब्द (वचन) से सोलह द्वीपों की रचना की। फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की। एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा। सोलह पुत्रों के नाम हैं:-(1) ‘‘कूर्म’’, (2)‘‘ज्ञानी’’, (3) ‘‘विवेक’’, (4) ‘‘तेज’’, (5) ‘‘सहज’’, (6) ‘‘सन्तोष’’, (7)‘‘सुरति’’, (8) ‘‘आनन्द’’, (9) ‘‘क्षमा’’, (10) ‘‘निष्काम’’, (11) ‘जलरंगी‘ (12)‘‘अचिन्त’’, (13) ‘‘पे्रम’’, (14) ‘‘दयाल’’, (15) ‘‘धैर्य’’ (16) ‘‘योग संतायन’’ अर्थात् ‘‘योगजीत‘‘।

यजुर्वेद में प्रमाण

परमात्मा कबीर साहेब पाप विनाशक हैं
यजुर्वेद अध्याय 8 मन्त्र 13 में कहा गया है कि परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है।


पाप विनाशक कबीर प्रभु सम्पूर्ण शांति दायक, कविरंघारिसि = कबीर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर है।
- यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32

सामवेद में प्रमाण

◆कबीर परमात्मा ही सृष्टि के रचयिता हैं
संख्या नंबर 920, सामवेद के उतार्चिक अध्याय 5, खंड 4, श्लोक 2
सर्व सृष्टि रचनहार, अविनाशी परमात्मा भक्त के पाप कर्मों को नष्ट करके पवित्र करने वाला स्वयं कबीर देव है।



पवित्र कुरान शरीफ में प्रमाण

◆कुरान के अनुसार कबीर परमात्मा ने ही सारी सृष्टि रची
हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि वह अल्लाहु अकबर कबीर वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो कुछ भी विद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपने सत्यलोक में तख्त पर विराजमान हो(बैठ) गया। क़ुरान सूरह अल-फुरकान 25 आयत 59



बाइबिल में प्रमाण

सर्व सृष्टि रचनहार कबीर परमात्मा
पवित्र बाइबल में उत्पत्ति ग्रंथ में पृष्ठ नं 2 अध्याय 1:20 व 2:5 में परमेश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपने स्वरुप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं। तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरुप के अनुसार उत्पन्न किया नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की।




सर्व शक्तिमान कबीर परमात्मा
पवित्र बाइबल में भगवान का नाम कबीर है - अय्यूब 36:5(और्थोडौक्स यहूदी बाइबल - OJB)
यहां स्पष्ट है कि कबीर ही शक्तिशाली परमात्मा है।
वही सर्व सृष्टि के रचनहार कुल मालिक हैं।


कबीर परमात्मा ने ही 6 दिन में सृष्टि रची
बाईबल उत्पत्ति ग्रंथ 1:26 - 2:3 में प्रमाण है कि कबीर परमेश्वर ने 6 दिन में सर्व सृष्टि रचकर सातवें दिन विश्राम किया तथा मनुष्यों की उत्पत्ति अपने स्वरुप के अनुसार की।



गुरु ग्रंथ साहिब में प्रमाण

श्री गुरु ग्रंथ साहिब पृष्ठ 839, महला 1, राग राग बिलावलु, अंश 1 में श्री नानक जी ने अपनी अमर वाणी में कहा है कि परमात्मा ने स्वयं ही अपने हाथों से सर्व सृष्टि की रचना की है।

आपे सचु कीआ कर जोड़ि। अंडज फोड़ि जोडि विछोड़।।
धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ। राति दिनंतु कीए भउ-भाउ।।


सर्व का रचनहार, दयालु,  सर्व सुखदाई परमात्मा कबीर साहेब जी हैं।
श्री गुरु ग्रन्थ साहेब, पृष्ठ नं. 721, महला 1, राग तिलंग
आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में लिखा है कि :-
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर गोश कून करतार। हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।।



जिन महापुरुषों ने परमात्मा को देखा उन्होंने भी अपनी वाणी में सिद्ध किया है कि कबीर परमात्मा ही सृष्टि की रचयिता हैं।

सर्व सृष्टि रचनहार कबीर परमात्मा
आदरणीय गरीब दास जी को कबीर परमात्मा मिले थे, उन्होंने अपनी वाणीयों में अनेकों प्रमाण दिए हैं कि कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा हैं, जिसने सर्व सृष्टि की रचना की।

"गरीब, जल थल पृथ्वी गगन में बाहर भीतर एक। पूर्ण ब्रह्म कबीर है, अविगत पुरुष अलेख।"

कबीर जी ही पूर्ण परमात्मा हैं व सर्व सृष्टि रचनहार हैं
संत दादू जी कहते हैं

जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सिरजनहार।।

समर्थ परमात्मा कबीर
संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में बताया कि,
सर्व सृष्टी के रचयिता सत कबीर यानि परमेश्वर कबीर जी ही हैं, जो सतलोक में रहते हैं।

ऐ स्वामी सृष्टा मैं, सृष्टी हमरे तीर, दास गरीब अधर बसू। अविगत सत कबीर।।

"कबीर सागर" अध्याय ज्ञानबोध खंड बोधसागर के पृष्ठ 21 - 22 में धर्मदास जी को परमेश्वर कबीर साहेब ने अपने द्वारा रची सृष्टि की जानकारी दी है। जिसमें परमेश्वर कबीर जी ने ब्रह्म, दुर्गा, ब्रह्मा, विष्णु, शिव की उत्पत्ति की जानकारी दी है।

"सृष्टि के उत्पत्ति कर्ता पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी" 

आदरणीय गरीबदास साहेब जी की अमृतवाणी में सृष्टी रचना का प्रमाण

आदि रमैणी सद् ग्रन्थ पृष्ठ नं. 690 से 692 तक

आदि रमैंणी अदली सारा, जा दिन होते धुंधुंकारा ।।
सतपुरुष कीन्हा प्रकाशा, हम होते तखत कबीर खवासा ।



  पूज्य कबीर साहेब  जी  की अमृतवाणी में सृष्टी रचना

विशेष:- निम्न अमृतवाणी सन् 1403 से {जब पूज्य कविर्देव (कबीर परमेश्वर) लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हुए} सन् 1518 {जब कविर्देव (कबीर परमेश्वर) मगहर स्थान से सशरीर सतलोक गए} के बीच में लगभग 600 वर्ष पूर्व परम पूज्य कबीर परमेश्वर (कविर्देव) जी द्वारा अपने निजी सेवक (दास भक्त) आदरणीय धर्मदास साहेब जी को सुनाई थी तथा धनी धर्मदास साहेब जी ने लिपिबद्ध की थी। परन्तु उस समय के पवित्र हिन्दुओं तथा पवित्र मुसलमानों के नादान गुरुओं (नीम-हकीमों) ने कहा कि यह धाणक (जुलाहा) कबीर झूठा है। किसी भी सद् ग्रन्थ में श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी के माता-पिता का नाम नहीं है। ये तीनों प्रभु अविनाशी हैं इनका जन्म मृत्यु नहीं होता। न ही पवित्र वेदों व पवित्र कुरान शरीफ आदि में कबीर परमेश्वर का प्रमाण है तथा परमात्मा को निराकार लिखा है। हम प्रतिदिन पढ़ते हैं। भोली आत्माओं ने उन विचक्षणों (चतुर गुरुओं) पर विश्वास कर लिया कि सचमुच यह कबीर धाणक तो अशिक्षित है तथा गुरु जी शिक्षित हैं, सत्य कह रहे होंगे। आज वही सच्चाई प्रकाश में आ रही है तथा अपने सर्व पवित्र धर्मों के पवित्र सद्ग्रन्थ साक्षी हैं। इससे सिद्ध है कि पूर्ण परमेश्वर, सर्व सृष्टी रचनहार, कुल करतार तथा सर्वज्ञ कविर्देव (कबीर परमेश्वर) ही है जो काशी (बनारस) में कमल के फूल पर प्रकट हुए तथा 120 वर्ष तक वास्तविक तेजोमय शरीर के ऊपर मानव सदृश शरीर हल्के तेज का बना कर रहे तथा अपने द्वारा रची सृष्टी का ठीक-ठीक (वास्तविक तत्व) ज्ञान देकर सशरीर सतलोक चले गए। कृपा प्रेमी पाठक पढ़ें निम्न अमृतवाणी परमेश्वर कबीर साहेब जी द्वारा उच्चारित :-

धर्मदास यह जग बौराना। कोइ न जाने पद निरवाना।।
 यहि कारन मैं कथा पसारा। जगसे कहियो राम नियारा।।
यही ज्ञान जग जीव सुनाओ। सब जीवोंका भरम नशाओ।।
अब मैं तुमसे कहों चिताई। त्रायदेवनकी उत्पति भाई।।
कुछ संक्षेप कहों गुहराई। सब संशय तुम्हरे मिट जाई।।
भरम गये जग वेद पुराना। आदि रामका का भेद न जाना।।
राम राम सब जगत बखाने। आदि राम कोइ बिरला जाने।।
 ज्ञानी सुने सो हिरदै लगाई। मूर्ख सुने सो गम्य ना पाई।।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन। वे जम दारुण वंशन अंजन।।
पहिले कीन्ह निरंजन राई। पीछेसे माया उपजाई।।
 माया रूप देख अति शोभा। देव निरंजन तन मन लोभा।।
कामदेव धर्मराय सत्ताये। देवी को तुरतही धर खाये।।
पेट से देवी करी पुकारा। साहब मेरा करो उबारा।।
 टेर सुनी तब हम तहाँ आये। अष्टंगी को बंद छुड़ाये।।
सतलोक में कीन्हा दुराचारि, काल निरंजन दिन्हा निकारि।।
माया समेत दिया भगाई, सोलह संख कोस दूरी पर आई।।
अष्टंगी और काल अब दोई, मंद कर्म से गए बिगोई।।
धर्मराय को हिकमत कीन्हा। नख रेखा से भगकर लीन्हा।।
धर्मराय किन्हाँ भोग विलासा। मायाको रही तब आसा।।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये। ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।।
तीन देव विस्त्तार चलाये। इनमें यह जग धोखा खाये।।
पुरुष गम्य कैसे को पावै। काल निरंजन जग भरमावै।।
तीन लोक अपने सुत दीन्हा। सुन्न निरंजन बासा लीन्हा।।
अलख निरंजन सुन्न ठिकाना। ब्रह्मा विष्णु शिव भेद न जाना।।
तीन देव सो उनको धावें। निरंजन का वे पार ना पावें।।
अलख निरंजन बड़ा बटपारा। तीन लोक जिव कीन्ह अहारा।।
ब्रह्मा विष्णु शिव नहीं बचाये। सकल खाय पुन धूर उड़ाये।।
तिनके सुत हैं तीनों देवा। आंधर जीव करत हैं सेवा।।
अकाल पुरुष काहू नहिं चीन्हां। काल पाय सबही गह लीन्हां।।
ब्रह्म काल सकल जग जाने। आदि ब्रह्मको ना पहिचाने।।
तीनों देव और औतारा। ताको भजे सकल संसारा।।
तीनों गुणका यह विस्त्तारा। धर्मदास मैं कहों पुकारा।।
गुण तीनों की भक्ति में, भूल परो संसार।
  कहै कबीर निज नाम बिन, कैसे उतरैं पार।।



🔸उपरोक्त अमृतवाणी में परमेश्वर कबीर साहेब जी अपने निजी सेवक श्री धर्मदास साहेब जी को कह रहे हैं कि धर्मदास यह सर्व संसार तत्वज्ञान के अभाव से विचलित है। किसी को पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा पूर्ण सृष्टी रचना का ज्ञान नहीं है। इसलिए मैं आपको मेरे द्वारा रची सृष्टी की कथा सुनाता हूँ। बुद्धिमान व्यक्ति तो तुरंत समझ जायेंगे। परन्तु जो सर्व प्रमाणों को देखकर भी नहीं मानेंगे तो वे नादान प्राणी काल प्रभाव से प्रभावित हैं, वे भक्ति योग्य नहीं। अब मैं बताता हूँ तीनों भगवानों (ब्रह्मा जी, विष्णु जी तथा शिव जी) की उत्पत्ति कैसे हुई? इनकी माता जी तो अष्टंगी (दुर्गा) है तथा पिता ज्योति निरंजन (ब्रह्म, काल) है। पहले ब्रह्म की उत्पत्ति अण्डे से हुई। फिर दुर्गा की उत्पत्ति हुई। दुर्गा के रूप पर आसक्त होकर काल (ब्रह्म) ने गलती (छेड़-छाड़) की, तब दुर्गा (प्रकृति) ने इसके पेट में शरण ली। मैं वहाँ गया जहाँ ज्योति निरंजन काल था। तब भवानी को ब्रह्म के उदर से निकाल कर इक्कीस ब्रह्मण्ड समेत 16 संख कोस की दूरी पर भेज दिया। ज्योति निरंजन (धर्मराय) ने प्रकृति देवी (दुर्गा) के साथ भोग-विलास किया। इन दोनों के संयोग से तीनों गुणों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी) की उत्पत्ति हुई। इन्हीं तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) की ही साधना करके सर्व प्राणी काल जाल में फंसे हैं।


जब तक वास्तविक मंत्र नहीं मिलेगा, पूर्ण मोक्ष कैसे होगा?

 पूर्ण मोक्ष

🔸पूर्ण मोक्ष सच्चे सतगुरु की शरण में जाकर व उनके बताए हुए मार्ग पर चलकर भक्ति करने वाले को पूर्ण मोक्ष मिलेगा
 और आज इस कलयुग में सिर्फ और सिर्फ संत रामपाल जी महाराज ही ऐसे पूर्ण गुरु है जो हमे शास्त्रो के अनुकूल भक्ति बता रहे है जिनकी शरण मे जाने से हमे पूर्ण मिक्ष प्रपात होगा तथा हुम् सभी आत्माए अपने निज स्थान सतलोक से हम इस कल के जल में फसकर आ गए थे वह बापस जा सकते है। संत रामपाल जी महाराज जी की शरण मे आने से सभी भक्तों के सारे दुख दूर हो जाते है और वह सब सतभक्ति करके सतलोक जाते है । तो हमारा सभी परमात्म प्रमी  भक्त आत्माओ से हाथ जोड़कर निवेदन है कि अगर आप  भी इस काल के लोक से निकलकर अपने निजी स्थान सतलोक जाना चाहते है तो पूर्ण संत सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की शरण मे आयें और अपना कल्याण कराएं।

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