- आखिर क्यों मनाते हैं मकर संक्रांति? : Why Makar Sankranti is celebrated?
Makar Sankanti |
मकर संक्रांति: हमारा भारत त्योहारो का देश है और त्यौहार के देश का प्रशिद्ध त्यौहार है। मकर सक्रांति इस एक त्यौहार को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नाम से बनाया जाता है. कहीं इसे मकर संक्रांति कहते हैं तो कहीं "पोंगल" (Pongal) लेकिन तमाम मान्यताओं के बाद इस त्यौहार को मनाने के पीछे का तर्क एक ही रहता है और वह है सूर्य की उपासना और दान।तो चलिए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी कुछ विशेष बातें:-
◆ सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर-संक्रांति कहलाता है. संक्रांति के लगते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है. मान्यता है कि मकर-संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने पर देवताओं का सूर्योदय होता है और दैत्यों का सूर्यास्त होने पर उनकी रात्रि प्रारंभ हो जाती है. उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं।
मकर संक्रांति इस साल भी 14 जनवरी को मनाई जाएगी ।
मकर संक्रांति: माघ कृष्ण पक्ष की पंचमी षष्ठी शनिवार तदनुसार 14 जनवरी, 2021 ई. को संपूर्ण दिन और रात व्यतीत हो जाने के पश्चात सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हो रहा है. अत: मकर संक्रांति को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक रहेगा।
- महापर्व मकर संक्रांति: पर्व एक रूप अनेक :-
सूर्य की मकर-संक्रांति को महापर्व का दर्जा दिया गया है. उत्तर प्रदेश में मकर-संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाकर खाने तथा खिचड़ी की सामग्रियों को दान देने की प्रथा होने से यह पर्व खिचड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया है. बिहार-झारखंड एवं मिथिलांचल में यह धारणा है कि मकर-संक्रांति से सूर्य का स्वरूप तिल-तिल बढ़ता है, अत: वहां इसे तिल संक्रांति कहा जाता है. यहां लोग प्रतीक स्वरूप इस दिन तिल तथा तिल से बने पदार्थो का सेवन किया जाता है।
मकर संक्रांति |
असम में इस दिन बिहू त्यौहार मनाया जाता है। दक्षिण भारत में पोंगल का पर्व भी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर होता है। वहां इस दिन वहां इस दिन तिल चावल दाल की खिचड़ी बनाई जाती है वहां यह पर 4 दिन तक चलता है नई फसल के अन्न से बने भोज्य पदार्थ भगवान को अर्पण करते है, किसान किसान अच्छे कृषि उत्पाद हेतु अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
मकर संक्रांति:- एक विशेष के त्योंहार के रूप में देश के विभिन्न अंचलों में विविध प्रकार से बनाई जाती है।
मकर संक्रांति:- हरियाणा व पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी कहा जाता है उत्तर प्रदेश में इसे दान का पर्व भी कहा जाता है।
- सच्चे गुरु के बिना दान करने से क्या होता है ?
दान में धन अन्य वस्त्र भोजन या कोई भी जीवन यापन के साधन रूपी वस्तु का ही प्रयोग करते हैं लेकिन गीता अध्याय 4 में ज्ञान यज्ञ को सभी यज्ञ से श्रेष्ट बताया गया है।
ज्ञान की प्राप्ति सच्चे गुरु के बिना नहीं हो सकती। गीता ज्ञान दाता भी कहता है कि उस ज्ञान की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी सन्त की खोज करो, वही तुझे तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
कहते हैं कि :-
गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।गुरु बिन दोनों निष्फल है, चाहे पूछो वेद पुराण।।
उदाहरण के लिए मान लीजिए हमने किसी को दान में पैसे दिए। वह भिखारी उन पैसे की शराब पीकर अपने बीवी बच्चों को प्रताड़ित करता है तो दान देने और उस पैसे के दुरुपयोग का कर्मफल आपको मिलेगा।
और यह मिला जुला फल इस तरह हो सकता है जैसे कोई अमीर व्यक्ति कुत्ता पालता है उसके लिए अलग कमरे की व्यवस्था करता है जिसमें एयरकंडिशन या हीटर, अच्छे बिस्तर, खाने के लिए अच्छा भोजन, सेवा करने के लिए अलग नौकर या वही अमीर व्यक्ति उस कुत्ते का नौकर बन जाता है। मालिक की सीट पर कुत्ता और ड्राइवर की सीट पर मालिक बैठता है।
आप समझ रहे होंगे कि यह अमीर आदमी को मिला कर्मफल है। जी नहीं यह कर्मफल उस कुत्ते द्वारा किये गए पूर्वजन्म के कर्मों का है जिसे सुविधाएं तो सारी मिली हैं लेकिन शरीर कुत्ते का मिल गया। उन सुविधाओं को भोग भी रहा है लेकिन आनन्द नहीं ले पा रहा क्योंकि उसने गुरु बिना दान पुण्य किया।
अर्थात गुरु के बिना कोई भी भक्ति कर्म निष्फल है। यदि आपको मनुष्य जीवन में सुख व उसके बाद मोक्ष प्राप्ति चाहिए तो गीता में बताये गए तत्वदर्शी सन्त की खोज कर उन्हें गुरु बनाये और अपना कल्याण करवाइये।
वह तत्वदर्शी सन्त जिसके विषय में गीता में बताया व उसकी पहचान जो गीता में बताई गयी है वह तत्वदर्शी सन्त रामपाल जी महाराज हैं।
अधिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी द्वारा लिखित पुस्तक अंध श्रद्धा भक्ति खतरा- ए -जान और जीने की राह भी पढ़ सकते हैं।